नागपत्री एक रहस्य-3

जिंदगी भी कितनी अजीब है ना मां, इसमें कभी प्रश्न समाप्त ही नहीं होते, जब भी हम किसी प्रश्न का उत्तर ढूंढते हैं कि, उसी में या उसके साथ ही एक नया प्रश्न उठ खड़ा होता है, और शायद यह जरूरी भी होगा,

           क्योंकि तभी तो हर सवाल के जवाब के लिए व्यक्ति निरंतर प्रयत्नशील बना रहेगा, यदि उसकी सारी समस्याएं, ख्वाहिशें और प्रश्नों के उत्तर समाप्त हो जाए, तब तो उसका जीवन शून्य ही हो जाएगा, वह शून्य की स्थिति में या तो परमात्मा को प्राप्त कर लेगा, या सन्यासी हो जाएगा,  



            है ना मां..... सन्यासी????? लक्षणा ने विस्मय की मुद्रा में मां की ओर देखते हुए कहा, उसकी ऐसी बात सुन मां को भी आश्चर्य हुआ, 
                           क्योंकि चपलता, चंचलता और हमेशा जिद से भरी हुई लक्षणा के मुंह से ऐसी बात सुन हैरान हो जाना स्वाभाविक ही था, कोई भी नहीं सोच सकता कि वाकई लक्षणा में अचानक इतना परिवर्तन देखने को मिलेगा।




             लेकिन चंदा देवी के लिए अपनी बेटी का अचानक गंभीर हो जाना बहुत ज्यादा चिंता का विषय नहीं था, क्योंकि स्त्री मन कब और किस विषय को लेकर गंभीर हो जाए, और किस समय बड़ी से बड़ी बात को सामान्य समझ ले, यह तो वह खुद भी नहीं जानती। 
                        लेकिन फिर भी एक मां होने के नाते उनके लिए इस परिवर्तन को जानना जरूरी था, और दूसरी बात बेटी को प्रत्युत्तर ना देना और उसकी मन की शंकाओं को दूर ना करना भी ठीक नहीं, 



चंदा देवी ने लक्षणा के पास जाकर उसके सिर पर हाथ घुमाते हुए कहा, अरे वाह..... वाकई बड़े सुंदर विचार है, लेकिन माहमाहिम क्या मैं इतने सुंदर विचारों का कारण जान सकती हूं,  और भला सुबह-सुबह दोनों बाप बेटी जो टहलने निकले थे, तो ऐसी कौन सी जगह घूम आए जो पूरी सांझ बिता दी, और इतनी देरी से लौटने के पश्चात दोनों के चेहरे की हवाइयां क्यों उड़ी हुई है।
           तुम्हारे पिताजी से पूछूंगी तो जवाब मिलने में काफी समय लग जाएगा, इसलिए कृपा कर आप ही बता दे लक्षणा देवी , कहते हुए उन्होंने बेटी को थोड़ा छेड़ना चाहा, या सरल शब्द में यूं कहा जाए कि उनका मकसद लक्षणा का ध्यान भटकाने से था, क्योंकि उसका गंभीर हो जाना कुछ सामान्य नहीं लग रहा था। 



तब ही चंदा देवी ने लक्षणा का ध्यान भटकाने के लिए एक दूसरा प्रश्न कर दिया, क्या घुड़सवारी संभव हुई, या आज भी ऐसे ही लौट आईं,
                इतना सुनते ही जैसे लक्षणा चहक उठी, और उछलकर मां के पास बिस्तर पर जा बैठी, और अपना सिर मां की गोद में रख कहने लगी, हां बिल्कुल मैं यही बताना चाह रही थी, कि हमने आज घुड़सवारी की चाहत पूरी की, 



लेकिन एक इच्छा पूरी होने के पश्चात हमारे मन में कुछ प्रश्न गुंज रहे हैं, जिनमें कुछ प्रश्नों के उत्तर तो अनिश्चितता के आधार पर तय करके हमने खुद ही पूर्ण कर लिए हैं, तो वहीं कुछ प्रश्न पानी के बुलबुले की तरह रह रह कर हमारे दिल में उठते जा रहे हैं, आखिर ऐसा क्यों हुआ????
हो गई इच्छा पूरी, कर ली घुड़सवारी..... तब तो भूल जाना चाहिए, खुशी मना कर लौटना चाहिए।
                   लेकिन यहां तो उल्टा है, पिताजी मेरे जन्म और मेरे भविष्य को लेकर परेशान हो गए, और मैं यह सोच कर परेशान हूं, कि आखिर आज तक किसी अन्य घोड़े ने मुझे घुड़सवारी का मौका क्यों नहीं दिया????? क्यों मुझ से देखकर पहले ही बिचक जाता था। 




क्या वाकई पिता की सोच के अनुसार मैं औरों से भिन्न हूं, और यदि हां तो, वह भिन्नता क्या है????? और तो और आचार्य चित्रसेन जी की कृपा से हमने कदंभ घोड़े की सवारी तो की, लेकिन वह घोडा भी किसी रहस्य से कम नहीं।
                       वह सिर्फ आचार्य चित्रसेन जी के कहने पर ही हाजिर होता है, उसकी तेज गति में सिवाय प्रकाश के कुछ और जान नहीं पड़ता, सब कुछ ऐसे लगता है जैसे मैं घुड़सवारी नहीं, कोई सपना देख रही हूं। 




किसी को बताने पर ताज्जुब होगा, कि उस घोड़े की सवारी से मैंने पल भर में जैसे पूरे ब्रह्मांड को छान मारा हो, लेकिन किस खोज में यह समझ नहीं आया, बस रह-रहकर एक तस्वीर किसी शिव नागेश्वर के मिश्रित स्वरूप में नजर आती, और वहां पास ही कुछ लिखा हुआ सा नजर आता, और फिर अचानक अदृश्य हो जाता।
                  एक बात तो साफ है, कि कुछ तो अति रहस्यमय था, जिसे मैं पूरी यात्रा में ढूंढते रही, मुझे ऐसा लगा जैसे पूरे ब्रह्मांड की शक्ति को कुछ विशेष ताम्र पात्रों में कैद करके रख दिया गया हो, और जिन्हें इस तरह संरक्षित कर दिया गया है, कि उन तक पहुंच पाना हर किसी के लिए संभव नहीं है। 



लेकिन रह रह कर कुछ विशेष आकृतियां, जिन्हें मुझे आपने बचपन में कहानियों में सुनाया था, जैसे यक्ष, गंधर्व, राक्षस और विशेषकर सब के साथ उस कुछ नागों की आकृतियां जिसे सब के साथ देखा जा सकता था, प्रदर्शित होती नजर आई।
                       मां यह मेरा डर नहीं और ना ही मैं झूठ कह रही हूं, या कहानियां सुना रही हूं, यह सब मैंने उस क्षणिक पल में कदंभ की घुड़सवारी में अनुभव किया।



सच कहती हूं मां, अनेकों प्रश्न निर्मित हुए मेरे उस क्षण भर के सफर में , मैंने विशाल ब्रह्मांड को संभाले हुए विशिष्ट आकृतियों को देखा,  समुद्र में उठते ज्वालामुखी को देखा, आकाश और धरती के मिलन को देखा, और खासकर समुद्र में विशाल नागराज की प्रतिमा को भी देखा। 
                     आप ही बताओ मां, क्या ऐसा संभव हो सकता है, मैं इसे स्वप्न मानू या हकिकत, लेकिन आप की शपथ मैंने यह सब कुछ पलभर में ही अनुभव कर लिया, और यह बात मैं किसी और को बता पाने में भी सक्षम नहीं, क्योंकि मैं जानती हूं, आपके अलावा और कोई मेरी बात पर यकीन नहीं करेगा। 



यह सुनते ही चौंकते हुए, चंदा देवी ने पूछा, क्या नाम लिया तुमने ????फिर से बताओ?????
आचार्य चित्रसेन जी???? और उनका घोड़ा कदंभ?????
जिसकी सवारी संभव ही नहीं, 
क्या तुम दोनों मां मनसा देवी के मंदिर से होकर आए हो???? सच कहो तुम्हें वहां किसने भेजा????? 
आखिर शहर के उस और का रास्ता तुम्हारे पिता को आज कैसे नजर आ गया?????



               आश्चर्य कि, आचार्य चित्रसेन जी के साथ कदंभ के दर्शन तुम दोनों को कैसे प्राप्त हुए, क्या उस समय मंदिर में और कोई भी था, लक्षणा ने ना में सिर हिलाते हुए आश्चर्य से कहा, हां मां.....तुम सच कह रही हो, उस समय अचानक तेज हवाओं के साथ सारा माहौल बदला, और जिस समय आश्चर्य चित्रसेन जी ने कदंभ को पुकारा, वहां किसी चमत्कार की तरह मंदिर के पीछे दौड़ लगाता हुआ, हमारे सामने आ खड़ा हुआ, और सच कहा आपने कि उस समय कि मेरे और पिताजी के अलावा कोई भी शेष नहीं था। 
आख़िर चंदा देवी ने जैसे ही आचार्य चित्रसेन जी और कदंभ के बारे में सुना तो वे आश्चर्यचकित क्यों हो गई?????


क्रमशः......

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1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 01:52 PM

Nice

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